कवि जो प्रेमी भी होना चाहें, उनके लिए सबसे बड़ी उपलिब्ध संभवत: यही होगी कि वे जब प्रेम कविता लिखना शुरू करें तो अंत तक कविता की तासीर प्रेम कविता जैसी ही रहे। लेकिन इस वातावरण में सारी बात बात प्रेम पर ही केंद्रित रहे यह कठिन लगता है। जहां जिम्मेदार लोग कह रहे हों कि महंगाई बढऩे का कारण गरीबों का अमीर होते जाना है…जहां वित्त विशेषज्ञ कह रहे हों कि उनके पास जादू की छड़ी नहीं है कि महंगाई छूमंतर हो जाए…जहां विदेशी खातों का खुलासा करने से नीति नियंता ही डर रहे हों, जहां लोकपाल विधेयक के कपाल पर सहमी हुई इच्छाशक्ति बार बार सिहर रही हो, जहां भ्रष्टाचार के प्रति व्यवस्था के नियंता भी दर्शक की तरह टिप्पणी करें, वहां केवल प्रेम की ही बात कैसे हो सकती है। हमारे आस पास और भी कई कुछ घटता है, हमें प्रभावित करता है।
संतुष्टि का मंत्रोच्चारण और उसके प्रभाव-प्रकार अलग हैं लेकिन जब रसोई को महंगाई खाने लगे तब प्रेम के भावों पर अभाव हावी हो ही जाते हैं। सिर और पैरों की जंग में चादर अक्सर फटती आई है। शायर ने कहा भी है :
ढांपें हैं हमने पैर तो नंगे हुए हैं सिर
या पैर नंगे हो गए सिर ढांपते हुए। यह तो हुई अभावों की बात। अब इसके बावजूद अगर प्रेम को ही देखना है तो कहा जा सकता है कि प्रेम में जो लड़के होते हैं वे बहुत सीधे होते हैं और प्रेम में जो लड़कियां होती हैं वे भी चालाक नहीं होती। प्रेम की तासीर है कि चालाकों को बख्श देता है। जिन लड़कियों के नितांत निजी पल मोबाइल कैमरे झपट लेते हैं वे बहुत बाद में जानती हैं कि प्रेम दरअसल था ही नहीं। वही कुछ कमजोर पल सार्वजनिक हो जाते हैं और ऐसा सबकुछ लिख डालते हैं जो पढने योग्य नहीं होता।
प्रेम न तो बांधता है और न छोड़ता है। वह है तो है और नहीं है तो नहीं है। वह सबके प्रति एक सा होता है। देश, संबंध, प्रकृति, मानवता और उस सबकुछ के प्रति जो भी जीवन में रंग भरे। प्रेम के बीस चेहरों में से वास्तविक को पहचानना हो तो कठिन भी नहीं। वह आवारा नहीं होता। जिम्मेदार और होशमंद होता है। आवारा होता तो खाप के खप्पर से न टकराता। प्रेम तो रास्ता दिखाता है शाश्वतता का। लेकिन प्रेम से भी दिलफरेब होते हैं गम रोजगार के। प्रेम न भटकता है और न भटकाता है, जमीन पर रखता है।
तभी तो फैज अहमद फैज से भी कहलवा गया था :
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न मांग
और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा