Friday, February 15, 2013

जिंदगी की राहें: लोकार्पण: पगडंडियाँ

जिंदगी की राहें: लोकार्पण: पगडंडियाँ

बहुत ही खुबसूरत विवरण प्रस्तुत किया है आपने उस खुबसूरत शाम का ............ कार्यक्रम में शामिल न होते हुए भी वहीँ होने का अहसास हुआ .... शुक्रिया आपका 
"कुछ पगडंडियाँ होती ही ऐसी हैं .. जो राह चलते मुसाफ़िर के संग हो लेती हैं .. उन्हें केवल सही दिशा का बोध ही नहीं करतीं .. संग संग चल अकेले मुसाफिर को एक कारवां बना देती हैं "
................ कुछ ऐसी ही है हमारी "पगडंडियाँ" ............ 
मुकेश जी , अंजू जी, अंजना जी , हिन्द युग्म एवं शैलेश भारतवासी जी का तहे दिल से शुक्रिया हमको अपने कारवां में शामिल करने के लिए .... 
एक से भले दो .. दो से भले चार .. तू अकेला कहाँ मुसाफिर .. हम हैं और रहेंगे हमेशा तेरे साथ :)

सभी रचनाकारों को अनंत शुभकामनायें .. ये कारवां यूँ ही चलता रहे .. आमीन 

5 comments:

Satish Saxena said...

बधाई ...

Asha Lata Saxena said...

"हम तो पत्थेर हैं नही फिर पिघलते क्यूं नहीं
भावनाओं की नदी में आज तक बहते रहे "
बहुत सुन्दर |बढ़िया रचना
आशा

दीपक बाबा said...

यादें ही तो रह जाती है साथ - बस कारवा यूँ ही चलता रहे.

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर ..... यादें याद आती हैं बातें भूल जाती हैं ..... आभार

aryan said...

bahut hiii sundar

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