Sunday, December 29, 2013

लापता

ना अता ना पता ये ज़िंदगी भी ना जानें अब क्यो है लापता
मुसकीले तो पहले भी आती रही अब क्यो है खफा खफा

ना जाने क्यो ये लम्हे भी अब लग रहे है जुदा  जुदा
समय ने केसा पलटा मारा खो ना जाए हम सदा सदा

जिनसे थे दोस्ताने हमारे वो दुश्मनों की मानिंद हो गये
प्यार के पंछी दिल के पिंजरो को भी तोड़ के चले गये

सावन की झड़ी भी अब तेजाबी बारिश क्यो सी लगती है
दिल की हर डगर अब गहरी-गहरी खो सी क्यो लगती है

अश्कों कों के बहने से अब प्यास भी बुझी-बुझी सी लगती है
प्यार के नाम से ही अब घबराहट-दलाहट सी सी लगती है

सावन की पुरवाइयाँ भी अब जेठ की लू मे बदलने लगी
चाँद की मधुर चाँदनी अब तापिस की भांति जलाने लगी

मौसम की अंगड़ाइयाँ जेसे सावन मे भी पतझड़ आ गया है

फूलों और बहारों मे खेत-खलिहानों मे आकाल सा छा गया है

No comments:

Followers

Feedjit