ना अता ना पता ये
ज़िंदगी भी ना जानें अब क्यो है लापता
मुसकीले तो पहले भी
आती रही अब क्यो है खफा खफा
ना जाने क्यो ये
लम्हे भी अब लग रहे है जुदा जुदा
समय ने केसा पलटा मारा खो ना जाए हम सदा सदा
जिनसे थे दोस्ताने हमारे वो दुश्मनों की मानिंद हो गये
प्यार के पंछी दिल के पिंजरो को भी तोड़ के
चले गये
सावन की झड़ी भी अब तेजाबी बारिश क्यो सी
लगती है
दिल की हर डगर अब गहरी-गहरी खो सी क्यो लगती
है
अश्कों कों के बहने से अब प्यास भी
बुझी-बुझी सी लगती है
प्यार के नाम से ही अब घबराहट-दलाहट सी सी
लगती है
सावन की पुरवाइयाँ भी अब जेठ की लू मे बदलने
लगी
चाँद की मधुर चाँदनी अब तापिस की भांति
जलाने लगी
मौसम की अंगड़ाइयाँ जेसे सावन मे भी पतझड़ आ
गया है
फूलों और बहारों मे खेत-खलिहानों मे आकाल सा
छा गया है
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