एक डोली और एक अर्थी आपस में टकरा गए इन्हें देख लोग घबरा गये ऊपर से आवाज़ आई ये कैसी बिदाई है लोगो ने कहा महबूब की डोली देखने यार की अर्थी आई है
Wednesday, October 19, 2011
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13 comments:
आपकी ये कविता तो नारी के मन के भावों को ही उजागर कर रही है । सुंदर कविता (गज़ल ) ।
BHUT BADIYA PRSTUTI PER BADHIYA.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! सटीक प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
दिल के हाथों आज भी मजबूर हैं तो क्या हुआ
मुश्किलों के दौर में हम हौसला रखते रहे.
बहुत सुन्दर.
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हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम
चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे...बेहतरीन..
एक अच्छी पोस्ट का लिंक दिया है आपने।
हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम
चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे
चाँद सूरज को भी हमसे रश्क होता था कभी
इसलिए कि हम उजाला हर तरफ़ करते रहे
बहुत ख़ूबसूरत रचना, बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग प् भी पधारने का कष्ट करें.
Bahut Khoob.
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
बहुत संदर
अच्छा लिंक दिया है ...
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