Thursday, November 25, 2010

याद की बरसातों में’

जब भी होता है तेरा जिक्र कहीं बातों में
लगे जुगनू से चमकते हैं सियाह रातों में
खूब हालात के सूरज ने तपाया मुझको
चैन पाया है तेरी याद की बरसातों में
रूबरू होके हक़ीक़त से मिलाओ आँखें
खो ना जाना कहीं जज़्बात की बारातों में
झूठ के सर पे कभी ताज सजाकर देखो
सच ओ ईमान को पाओगे हवालातों में
आज के दौर के इंसान की तारीफ़ करो
जो जिया करता है बिगड़े हुए हालातों में
आप दुश्मन क्यों तलाशें कहीं बाहर जाकर
सारे मौजूद जब अपने ही रिश्ते नातों में
सबसे दिलचस्प घड़ी पहले मिलन की होती
फिर तो दोहराव है बाकी की मुलाक़ातों में
गीत भँवरों के सुनो किससे कहूँ मैं नीरज
जिसको देखूँ वो है मशगूल बही खातों में

‘याद बहुत आता है

हर पल मुझको अपना बचपन, याद बहुत आता है
कुछ देर को तो मन हंसता है, फिर जाने टूट क्‍यों जाता है
क्‍या हो जाता कुदरत को, यदि सच मेरा वो सपना होता
चाहत थी जिस बचपन की, काश मेरा वो अपना होता
नन्‍हीं सी मुस्‍कान देख जब, पापा का चेहरा खिल जाता
उन तोतले शब्‍दों में जब, मम्‍मी का मन खो जाता
भैया की अंगुली को थामे, जब मैंने चलना सीखा
पथरीली राहों पर जब, गिर-गिरकर फिर उठना सीखा
तूफानों के बीच घिरा, सदा अकेला खुद को पाया
कहने को सब साथ थे, पर नहीं साथ था अपना साया
याद नहीं वो सारी बातें, बस कुछ हैं भूली-बिसरी यादें
यादों के वो सारे पल, अब तक मेरे पास है
इतने सालों बाद भी, वो ही सबसे खास है
कुछ पंखुडियों के रंग है, कुछ कलियों की मुस्‍कान है
कुछ कागज की नावें हैं, कुछ रेतों के मकान है
कुछ आशाओं के दीप है, कुछ बचपन के मीत है
कुछ बिना राग के गीत हैं, कुछ अनजानों की प्रीत है
कुछ टूटे दिल के टुकड़े हैं, कुछ मुरझाए से मुखड़े हैं
कुछ अपनों के दर्द है, कुछ चोटों के निशान हैं
मेरे प्‍यारे बचपन की, बस इतनी सी पहचान है
मेरे प्‍यारे बचपन की, बस इतनी सी पहचान है।

यादों ने आज’

यादों ने आज फिर मेरा दामन भिगो दिया
दिल का कुसूर था मगर आँखों ने रो दिया
मुझको नसीब था कभी सोहबत का सिलसिला
लेकिन मेरा नसीब कि उसको भी खो दिया
उनकी निगाह की कभी बारिश जो हो गई
मन में जमी जो मैल थी उसको भी धो दिया
गुल की तलाश में कभी गुलशन में जब गया
खुशबू ने मेरे पाँव में काँटा चुभो दिया
सोचा कि नाव है तो फिर मँझधार कुछ नहीं
लेकिन समय की मार ने मुझको डुबो दिया
दोस्तों वफ़ा के नाम पर अरमाँ जो लुट गए
मुझको सुकून है मगर लोगों ने रो दिया

ये ख़ास दिन

ये ख़ास दिन है प्रेमियों का,
प्यार की बातें करो
कुछ तुम कहो कुछ वो कहें,
इज़हार की बातें करो
जब दो दिलों की धड़कनें
इक गीत-सा गाने लगें
आँखों में आँखें डाल कर
इक़रार की बातें करो
ये कीमती-सा हार जो
लाए हो वो रख दो कहीं
बाहें गले में डाल कर,
इस हार की बातें करो
जिसके लबों की मुस्कुराहट
ने बदल दी ज़िंदगी
उस गुलबदन के होंट औ
रुखसार की बातें करो
अब भूल जाओ हर जफ़ा,
ये प्यार का दस्तूर है
राहे-मुहब्बत में वफ़ा-ए-
यार की बातें करो

मुद्दत के बाद

मुद्दत के बाद मोम की मूरत में ढल गया
मेरी वफ़ा की आँच में पत्थर पिघल गया
उसका सरापा हुस्न जो देखा तो यों लगा
जैसे अमा की रात में चंदा निकल गया
ख़ुशबू जो उसके हुस्न की गुज़री क़रीब से
मन भी मचल गया मेरा तन भी मचल गया
गुज़रे हुए लम्हात को भुलूँ तो किस तरह
यादों में रात ढल गई सूरज निकल गया
मIना उसी के नूर से रोशन है ज़िंदगी
उसका तसव्वुर ही मेरे शेरों में ढल गया

मेरे लिए’


बेमुरव्वत है मगर दिलबर है वो मेरे लिए
हीरे जैसा कीमती पत्थर है वो मेरे लिए
हर दफा उठकर झुकी उसकी नज़र तो यों लगा
प्यार के पैग़ाम का मंज़र है वो मेरे लिए
आईना उसने मेरा दरका दिया तो क्या हुआ
चाहतों का खूबसूरत घर है वो मेरे लिए
एक लम्हे के लिए खुदको भुलाया तो लगा
इस अंधेरी रात में रहबर है वो मेरे लिए
उसने तो मुझको जलाने की कसम खाई मगर
चिलचिलाती धूप में तरुवर है वो मेरे लिए
जिस्म छलनी कर दिया लेकिन मुझे लगता रहा
ज़िंदगी भर की दुआ का दर है वो मेरे लिए

मुद्दत के बाद

ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो
ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो,
भले छीन लो मुझसे USA का विसा
मगर मुझको लौटा दो वो क्वालेज का कन्टीन,
वो चाय का पानी, वो तीखा समोसा……….
कडी धूप मे अपने घर से निकलना,
वो प्रोजेक्ट की खातीर शहर भर भटकना,
वो लेक्चर मे दोस्तों की प्रोक्झी लगाना,
वो सर को चीढाना ,वो एरोप्लेन उडाना,
वो सबमीशन की रातों को जागना जगाना,
वो ओरल्स की कहानी, वो प्रक्टीकल का किस्सा…..
बीमारी का कारण दे के टाईम बढाना,
वो दुसरों के Assignments को अपना बनाना,
वो सेमीनार के दिन पैरो का छटपटाना,
वो WorkShop मे दिन रात पसीना बहाना,
वो Exam के दिन का बेचैन माहौल,
पर वो मा का विश्वास – टीचर का भरोसा…..
वो पेडो के नीचे गप्पे लडाना,
वो रातों मे Assignments Sheets बनाना,
वो Exams के आखरी दिन Theater मे जाना,
वो भोले से फ़्रेशर्स को हमेशा सताना,
Without any reason, Common Off पे जाना,
टेस्ट के वक्त Table me मे किताबों को रखना,
ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो,
भले छीन लो मुझसे USA का विसा
मगर मुझको लौटा दो वो क्वालेज का कन्टीन

ये दुनिया.

ये दुनिया इस तरह क़ाबिल हुई है
कि अब इंसानियत ग़ाफ़िल हुई है
सहम कर चाँद बैठा आसमाँ में
फ़ज़ा तारों तलक क़ातिल हुई है
खुदाया, माफ़ कर दे उस गुनह को
लहर जिस पाप की साहिल हुई है
बड़ी हसरत से दौलत देखते हैं
जिन्हें दौलत नहीं हासिल हुई है
जहाँ पर गर्द खाली उड़ रही हो
वहाँ गुर्बत की ही महफ़िल हुई है

लहू से ♥ पे

लहू से ♥ पे जो खीचा था नक्शा कैसे मिटादु !
तू ही बता मैं तुझको अपने ♥ से कैसे भुलादु !!
मेरे हस्ती को तो बस आस थी तेरे वजूद की !
मेरे हस्ती का जो हशी है उसे कैसे भुला दु !!
मेरे तनहाई में जो साथ मेरा छोर न पाया !
सब से फुरसत का जो हशी है उसे कैसे भुलादु !!
जिनकी तलाश में मेरा जीवन गुजर गया !
उस दोस्त को पाकर उसे कैसे भुला दु !!
वही तो याद थी सदा वही याद है सदा !
जो याद रहेगी सदा उसे कैसे भुला दु !!

मुझे पिला के

मुझे पिला के ज़रा-सा क्या गया कोई
मेरे नसीब को आकर जगा गया कोई
मेरे क़रीब से होकर गुज़र गई दुनिया
मेरी निगाह में लेकिन समा गया कोई
मेरी गली की हवाओं को क्या हुआ आख़िर
दर-ओ-दीवार को दुश्मन बना गया कोई
मेरे हिसाब में ज़ख़्मों का कोई हिसाब नहीं
मेरे हिसाब को आकर मिटा गया कोई
मेरी वफ़ा ने तो चाहा कि चुप रहूँ लेकिन
ज़रा-सी बात पर मुझको रुला गया कोई
ग़मों के दौर में दोस्त मेरी खुशी के लिए
किसी मज़ार पर चादर चढ़ा गया कोई

वो जाने कहाँ हैं

दूर तक निगाह में खामोशियाँ हैं
सामने गुलाब है पर वो जाने कहाँ हैं
गुलाब की खुशबू गुलाब-सी रंगत
है जिनके पास वो जाने कहाँ हैं
ख़्वाबों में आते हैं जो ख़्वाब बनकर
मैं ढूँढूँ उन्हें पर वो जाने कहाँ हैं
मेरे ख़्वाब उनकी ही गलियों में खोये
हम जिनमें खोये वो जाने कहाँ हैं
दूर तक निगाह में. . .
चमन में हैं फूल उनमें हूँ मैं भी
मगर जो हैं माली वो जाने कहाँ हैं
उनके संदेशे का है इंतज़ार
जो हैं डाकिए वो जाने कहाँ हैं
उठती हैं नज़रें क्यों राहों की जानिब
मेरा हमसफर तो न जाने कहाँ हैं

बड़ी मुश्किल सी कोई’

बड़ी मुश्किल-सी कोई बात भई आसान होती है
अगर इंसानी फ़ितरत की हमें पहचान होती है
हुजूमे-ग़म जो आ जाए हुजूमे-शाद हो ऐ दिल
ग़मों से लड़ के ही तो ज़िंदगी आसान होती है
कहा करते हैं दौलत में बहुत अच्छइयाँ होतीं
ये जो हो हाथ में शैतान के, शैतान होती है
बड़ी सरमाया है नेकी हज़ारों नेकियाँ कर लो
यहाँ तक एक भी नेकी कभी ताबान होती है
अगर खुशियाँ ही खुशियाँ हों तुम्हें महसूस होगा रंज
मुसलसल रौशनी भी दर्द का सामान होती है।

वो मेरा ही काम करेंगे

वो मेरा ही काम करेंगे
जब मुझको बदनाम करेंगे
अपने ऐब छुपाने को वो
मेरे क़िस्से आम करेंगे
क्यों अपने सर तोहमत लूं मैं
वो होगा जो राम करेंगे
दीवारों पर खून छिड़क कर
हाक़िम अपना नाम करेंगे
हैं जिनके किरदार अधूरे
दूने अपने दाम करेंगे
अपनी नींदें पूरी करके
मेरी नींद हराम करेंगे
जिस दिन मेरी प्यास मरेगी
मेरे हवाले जाम करेंगे
कल कर लेंगे कल कर लेंगे
यूँ हम उम्र तमाम करेंगे
सोच-सोच कर उम्र बिता दी
कोई अच्छा काम करेंगे
कोई अच्छा काम करेंगे
खुदको फिर बदनाम करेंगे !!

पहचान

शक्ल हो बस आदमी का क्या यही पहचान है।
ढूँढ़ता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इन्सान है।।
घाव छोटा या बडा एहसास दर्द का एक है।
दर्द एक दूजे का बाँटें तो यही एहसान है।।
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जीए।
जिंदगी, उनको जगाना हक से भी अनजान है।।
लूटकर खुशियाँ हमारी अब हँसी वे बेचते।
दीख रहा, वो व्यावसायिक झूठी सी मुस्कान है।।
हार के भी अब जितमोहन का हार की चाहत उन्हें।
ताज काँटों का न छूटे बस यही अरमान है।।

साथ तुम्हारा कितना

तुम जो साथ हमारे होते
कितने हाथ हमारे होते
दूर पहुँच से होते जो भी
बिल्कुल पास हमारे होते
माफ़ सज़ाएँ होती रहतीं
कितने जुर्म हमारे होते
बँटती समझ बराबर सबको
ऐसे न बँटवारे होते
रार नहीं तकरार नहीं तो
कितने ख़्वाब सुनहरे होते
काजल से होती यारी तो
नैना ये कजरारे होते
कदम मिला कर हमसे चलते
तुम भी अपने प्यारे होते
मिर्च मसाले न होते तो
ऐसे न चटखारे होते
पैदा न मोबाइल होता
दुखी खूब हरकारे होते
सौदे न सरकारी होते
कैसे नोट डकारे होते

हम तुम्हारे अब भी

कहने को तो हम, खुश अब भी हैं
हम तुम्हारे तब भी थे, हम तुम्हारे अब भी हैं
रूठने-मनाने के इस खेल में, हार गए हैं हम
हम तो रूठे तब ही थे, आप तो रूठे अब भी हैं
मेरी ख़ता बस इतनी है, तुम्हारा साथ चाहता हूँ
तब तो पास होके दूर थे, और दूरियाँ अब भी हैं
मुझसे रूठ के दूर हो, पर एहसास तो करो
प्यासे हम तब भी थे, प्यासे हम अब भी हैं
इस इंतज़ार में मेरा क्या होगा, तुम फिक्र मत करना
सुकून से हम तब भी थे, सुकून से हम अब भी हैं
बस थोड़ा रूठने के अंजाम से डरते हैं
डरते हम तब भी थे, डरते हम अब भी हैं
हमारी तमन्ना कुछ ज़्यादा नहीं थी, जो पूरी न होती
कम में गुज़ारा तब भी था, कम में गुज़ारते अब भी हैं
चलते हैं तीर दिल पे कितने, जब तुम रूठ जाते हो
ज़ख्मी हम तब भी थे, ज़ख्मी हम अब भी हैं
मेरी मासूमियत को तुम, ख़ता समझ बैठे हो
मासूम हम तब भी थे, मासूम हम अब भी हैं
आप हमसे रूठा न करें, बस यही इल्तिजा है
फ़रियादी हम तब भी थे, फ़रियादी हम अब भी हैं
तुम हो किस हाल में, कम से कम ये तो बता दो
बेखब़र हम तब भी थे, बेखब़र हम अब भी हैं

नहीं करना’

वफ़ा रुसवा नहीं करना
सुनो ऐसा नहीं करना
मैं पहले ही बहु अकेला हु
मुझे और तनहा नहीं करना
जुदाई भी अगर आये
दिल छोटा नहीं करना
बहु मश्रुफ हो जाना
मुझे सोचा नहीं करना
भरोसा भी जरुरी है
मगर साबका नहीं करना
मुकद्दर फिर मुकद्दर है
कभी दावा नहीं करना
जो लिखा है जरुर होगा
कभी शिकवा नहीं करना
मेरी गुजारिश तुमसे है
मुझे आधा नहीं करना
हकीकत है मिलान अपना
इसे सपना नहीं करना
हमे तुम याद रहते हो
हमे भूला नहीं करना

नदिया- नदिया’

नदिया- नदिया, सागर- सागर
पनघट- पनघट, गागर- गागर
मेरी प्यास भटकती दर- दर
भटकन की कैसी मजबूरी
भीतर है अपनी कस्तूरी
संगम- संगम, तीरथ- तीरथ
मन्दिर- मन्दिर, देव- देव घर
मेरी आस भटकती दर- दर
खोज रहा मन गंध सुहानी
युगों- युगों की यही कहानी
उपवन- उपवन, चन्दन- चन्दन
सावन- सावन ,जलधर- जलधर
मेरी सांस भटकती दर- दर
यह कैसा अनजाना भ्रम है
धरा- गगन जैसा संगम है
संत- संत पर, पंथ- पंथ पर
मरघट- मरघट, सुधा कुंड पर
मेरी लाश भटकती दर- दर

सोचते ही सोचते

यह सोचते ही सोचते सब उम्र पूरी हो गई।
इंसान की मुस्कान क्यों आधी-अधूरी हो गई।।
देखिए हर भाल पर चिन्ता की रेखा खिंच रहीं।
नफरत के उपवन सिंच रहे और नागफनियॉं खिल रहीं।।
इंसान से इंसान की अब क्यों है दूरी हो गई।
यह सेचते ही सोचते
कुछ तृस्त हैं कुछ भ्रष्ट हैं कुछ भ्रष्टता की ओर हैं।
हो रहीं गमगीन संध्यायें सिसकती भोर हैं।।
वह सुहागिन मॉंग क्यों कर बिन सिंदूरी हो गई।।
यह सोचते ही सोचते
इंसान पशुता पर उतारू हो रहा नैतिक पतन।
यह देख कर मॉं भारती के हो रहे गीले नयन।।
प्रेम की क्यों भावना भी विष धतूरी हो गई।।

न जानूँ कि कौन हूँ मैं

मै न जानूँ कि कौन हूँ मैं
लोग कहते हैं सबसे जुदा हूँ मैं
मैंने तो प्यार सबसे किया
पर न जाने कितनों ने धोखा दिया।
चलते-चलते कितने ही अच्छे मिले,
जिनको बहुत प्यार दिया,
पर कुछ लोग समझ ना सके,
फिर भी मैंने सबसे प्यार किया।
दोस्तों की खुशी से ही खुशी है,
तेरे गम से हम दुखी है,
तुम हँसो तो खुश हो जाऊँगा।
तेरी आँखों में आँसू हो तो मनाऊँगा।
मेरे सपने बहुत बड़े है
पर अकेले है हम, अकेले है,
फिर भी चलता रहूँगा
मंज़िल को पाकर रहूँगा।
ये दुनिया बदल जाए कितनी भी,
पर मैं न बदलूँगा,
जो बदल गए वो दोस्त थे मेरे
पर कोई न पास है मेरे।
प्यार होता तो क्या बात होती
कोई न कोई तो होगी कहीं न कहीं
शायद तुम से अच्छी या
कोई नहीं इस दुनिया में तुम्हारे जैसी।
आसमान को देखा है मैंने, मुझे जाना वहाँ है
ज़मीन पर चलना नहीं, मुझे जाना वहाँ है,
पता है गिरकर टूट जाऊँगा, फिर उठने का विश्वास है
मैं अलग बनकर दिखाऊँगा।
पता नहीं ये रास्ते ले जाएँ कहाँ,
न जाने ख़त्म हो जाएँ, किस पल कहाँ,
फिर भी तुम सब के दिलों में ज़िंदा रहूँगा,
यादों में सब की, याद आता रहूँगा।

हम तेरे हो गए

पेड़ की छाँव में, बैठे-बैठे सो गए
तुमने मुसकुरा कर देखा, हम तेरे हो गए
तमन्ना जागी दिल में, तुम्हें पाने की
तुम्हें पा लिया, और खुद तेरे हो गए
कब तलक यों ही, दूर रहना पड़ेगा
इस सोच में डूबे-डूबे, दुबले हो गए
बिन पत्तों की, उस डाली को देखा
तसव्वुर किया तुम्हारा, और कवि हो गए
यों ही बैठे रहे, सोचते रहे, हर पल
ख़यालों में तुम आते रहे, हमनशीं हो गए
राज़दार मेरे बनकर, ज़िंदगी में आ गए
रहनुमा बन गए, खुद राज़ हो गए
कोई फूल देखूँ, तो लगता है तुम हो
फिर फूल का क्या करूँ, खुद फूल हो गए
नसीब की कमी है, गुलाब सहता नहीं
पर तुम्हीं ख़यालों में, इक हँसी गुलाब हो गए
बेकरारी बढ़ती है, जब तुम याद आते हो
याद मैं करता नहीं, फिर भी याद आ गए
तुम्हारे लिए है, ये ज़िंदगी मेरी
ख़्वाहिश में तुम्हारी, हम लाचार हो गए
तड़प-तड़प के, एक-एक पल, मुश्किल से बीतते हैं
एक पल बीता, ऐसा लगे, कई साल हो गए

दोस्त का प्यार चाहिए’

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो ‘मित्र’ का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए,

दोस्त का प्यार चाहिए’

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो ‘मित्र’ का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए,

हम तेरे हो गए

पेड़ की छाँव में, बैठे-बैठे सो गए
तुमने मुसकुरा कर देखा, हम तेरे हो गए
तमन्ना जागी दिल में, तुम्हें पाने की
तुम्हें पा लिया, और खुद तेरे हो गए
कब तलक यों ही, दूर रहना पड़ेगा
इस सोच में डूबे-डूबे, दुबले हो गए
बिन पत्तों की, उस डाली को देखा
तसव्वुर किया तुम्हारा, और कवि हो गए
यों ही बैठे रहे, सोचते रहे, हर पल
ख़यालों में तुम आते रहे, हमनशीं हो गए
राज़दार मेरे बनकर, ज़िंदगी में आ गए
रहनुमा बन गए, खुद राज़ हो गए
कोई फूल देखूँ, तो लगता है तुम हो
फिर फूल का क्या करूँ, खुद फूल हो गए
नसीब की कमी है, गुलाब सहता नहीं
पर तुम्हीं ख़यालों में, इक हँसी गुलाब हो गए
बेकरारी बढ़ती है, जब तुम याद आते हो
याद मैं करता नहीं, फिर भी याद आ गए
तुम्हारे लिए है, ये ज़िंदगी मेरी
ख़्वाहिश में तुम्हारी, हम लाचार हो गए
तड़प-तड़प के, एक-एक पल, मुश्किल से बीतते हैं
एक पल बीता, ऐसा लगे, कई साल हो गए

दिल में गुबार

जिनके दिल में गुबार रहते हैं
यार वो बादाख़्वार रहते हैं
कि जहाँ ओहदेदार रहते हैं
लोग उनके शिकार रहते हैं
पढ़ते लिखने में जो भी अव्वल थे
अब तो वो भी बेकार रहते हैं
मशवरा उनको कभी देना न
जो ज़हन से बीमार रहते हैं
किसी दौलत के ग़ार में देखो
वहाँ खुदगर्ज़ यार रहतै हैं
आजकल जिनके पास दौलत है
हुस्न के तल्बगार रहते हैं
किसी दफ़्तर के बड़े हाकिम ही
ऐश में गिरिफ़्तार रहते हैं

दिल की सदा

गीत है दिल की सदा हर गीत गाने के लिए
गुनगुनाने के लिए सबको सुनाने के लिए
ज़ख़्म रहता है कहीं और टीस उठती है कहीं
दिल मचलता है तभी कुछ दर्द गाने के लिए
फूल की पत्ती से नाज़ुक गीत पर मत फेंकिए
बेसुरे शब्दों के पत्थर आज़माने के लिए
गीत के हर बोल में हर शब्द में हर छंद में
प्यार का पैग़ाम हो मरहम लगाने के लिए
फूल खिलते हैं वफ़ा के तो महकती है फ़ज़ा
हुस्न ढलता है सुरों में गुनगुनाने के लिए
आज के इस दौर में ‘जितू’ किसी को क्या कहे
गीत लिखना चाहिए दिल से सुनाने के लिए

तेरा हँसना’

तेरा हँसना कमाल था साथी
हमको तुमपर मलाल था साथी
दाग चेहरे पे दे गया वो हमें
हमने समझा गुलाल था साथी
रात में आए तेरे ही सपने
दिन में तेरा ख्याल था साथी
उड़ गई नींद मेरी रातों की
तेरा कैसा सवाल था साथी
करने बैठे थे दिल का वो सौदा
कोई आया दलाल था साथी

जो पत्थर

जो पत्थर तुमने मारा था मुझे नादान की तरह
उसी पत्थर को पूजा है किसी भगवान की तरह
तुम्हारी इन उँगलियों की छुअन मौजूद है उस पर
उसे महसूस करता हूँ किसी अहसान की तरह
उसी पत्थर में मिलती है तुम्हारी हर झलक मुझको
उसी से बात करता हूँ किसी इनसान की तरह
कभी जब डूबता हूँ मैं उदासी के समंदर में
तुम्हारी याद आती है किसी तूफ़ान की तरह
मेरी किस्मत में है दोस्त तुम्हारे हाथ का पत्थर
भूल जाना नहीं मुझे किसी अंजान की तरह

जीवन

यह जीवन एक सफर है,
सुख दुख का भंवर है,
सबके जीवन की दिशा अलग है,
लोग अलग परिभाषा अलग है।
पृथक पृथक है उनके भाव,
वेश अलग अभिलाषा अलग है।
कोई जीता है स्व के लिये,
तो कोई जीवित है नव के लिये,
कहीं दिलों में प्रेम की इच्छा,
तो कहीं है जीत का जज़्बा,
कहीं सांस लेते हैं संस्कार,
तो कहीं किया कुकर्मों ने कब्ज़ा।
कहीं सत्य नन्हीं आँखों से
सूर्य का प्रकाश ढूँढ रहा,
तो कहीं झूठ का काला बादल,
मन के सपनों को रूँध रहा।
मैंने देखा है सपनों को जलते,
झुलसे मन में इच्छा पलते,
जब मन को मिलता न किनारा,
ढूँढे वह तिनके का सहारा,
सपनों की माला के मोती,
बिखरे जैसे बुझती हुई ज्योति।
दिल में एक सवाल छुपा है,
माँगे प्रभु की असीम कृपा है,
आज फिर से जीवन जी लूँ,
मन में यह विश्वास जगा है।
धूप छाँव तो प्रकृति का नियम है,
जितना जीवन मिले वो कम है,
आज वह चाहता है जीना,
न झुके कभी, ताने रहे सीना,
जीवन का उसने अर्थ है जाना,
जाना ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त स्वयं है।

ज़िंदगी

ज़िंदगी अभिशाप भी, वरदान भी
ज़िंदगी दुख में पला अरमान भी
कर्ज़ साँसों का चुकाती जा रही
ज़िंदगी है मौत पर अहसान भी
वे जिन्हें सर पर उठाया वक्त ने
भावना की अनसुनी आवाज़ थे
बादलों में घर बसाने के लिए
चंद तिनके ले उड़े परवाज़ थे
दब गए इतिहास के पन्नों तले
तितलियों के पंख, नन्हीं जान भी
कौन करता याद अब उस दौर को
जब ग़रीबी भी कटी आराम से
गर्दिशों की मार को सहते हुए
लोग रिश्ता जोड़ बैठे राम से
राजसुख से प्रिय जिन्हें वनवास था
किस तरह के थे यहाँ इंसान भी।
आज सब कुछ है मगर हासिल नहीं
हर थकन के बाद मीठी नींद अब
हर कदम पर बोलियों की बेड़ियाँ
ज़िंदगी घुडदौड़ की मानिंद अब
आँख में आँसू नहीं काजल नहीं
होठ पर दिखती न वह मुस्कान भी।

जब जानता जग जाती हैं’

मुम्बई को अपना कहने वाले नज़र क्यों नहीं आते हैं !
मुम्बई के दुश्मनों से अब वो क्यों नहीं टकराते हैं !!
क्या ताज, ओबेराय, मरीन हाउस, मुम्बई में नहीं हैं !
या फिर मुम्बई के ठेकेदार अपनी मौत से घबराते हैं !!
दुसरे प्रान्त का कह कर अपने ही लोगों को मारते हैं !
वही दुसरे प्रान्त के लोग मुम्बई पर जान को लुटाते हैं !!
अपने ही देश के लोग जब तिनके की तरह रहते हैं !
वो जरा से वार से लकड़ी की तरह टूट कर बिखर जाते हैं !!
शर्म भी नहीं आती हैं इस देश के निकम्मे नेताओ को !
कहते हैं बड़े – बड़े शहरो में छोटे हादसे हो ही जाते हैं !!
मुम्बई की जंग में शहीद तो बहुत जवान हुए मगर !
शहर में सिर्फ चंद शहीदों के ही फोटो लगाए जाते हैं !!
जो दुश्मन हमारे देश पर करते हैं छुप कर वार !
हमारे नेता उन्ही को दावत पर इज्जत से बुलाते हैं !!
सुनलो सभी नेताओ जब जनता जाग जाती हैं !
तब कुर्सी खुद – ब – खुद निचे भाग जाती हैं !!

चाँदनी को क्या हुआ

चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी
झुरमुटों को छोड़कर चिड़िया कहीं जाने लगी
पेड़ अब सहमे हुए हैं देखकर कुल्हाड़ियाँ
आज तो छाया भी उनकी डर से घबराने लगी
जिस नदी के तीर पर बैठा किए थे हम कभी
उस नदी की हर लहर अब तो सितम ढाने लगी
वादियों में जान का ख़तरा बढ़ा जब से बहुत
अब तो वहाँ पुरवाई भी जाने से कतराने लगी
जिस जगह चौपाल सजती थी अंधेरा है वहाँ
इसलिए कि मौत बनकर रात जो आने लगी
जिस जगह कभी किलकारियों का था हुजूम
आज देखो उस जगह भी मुर्दनी छाने लगी

चाँद पूनम का

न जाने चाँद पूनम का, ये क्या जादू चलाता है
कि पागल हो रही लहरें, समुंदर कसमसाता है

हमारी हर कहानी में, तुम्हारा नाम आता है
ये सबको कैसे समझाएँ कि तुमसे कैसा नाता है
ज़रा सी परवरिश भी चाहिए, हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है
ये मेरे और ग़म के बीच में क़िस्सा है बरसों से
मै उसको आज़माता हूँ, वो मुझको आज़माता है
जिसे चींटी से लेकर चाँद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर, सबक़ मुझको पढ़ाता है
नहीं है बेईमानी गर ये बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर, जाने कहाँ पानी गिराता है
पता अनजान के किरदार का भी पल में चलता है
कि लहजा गुफ्तगू का भेद सारे खोल जाता है
ख़ुदा का खेल ये अब तक नहीं समझे कि वो हमको
बनाकर क्यों मिटाता है, मिटाकर क्यूँ बनाता है
वो बरसों बाद आकर कह गया फिर जल्दी आने को
पता माँ-बाप को भी है, वो कितनी जल्दी आता है

गम कुछ कम नहीं’

गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है
कांटे मेरी राहों के हरसूरत मेरे हिस्से में ही आयेंगे
गर इक गुल है मेरे साथ तो जरूर कोई बात तो है
मुझे आज तक जो भी मिला,मशक्कत से मिला
तुझ से मिलने में मेरी तकदीर का कुछ हाथ तो है
अंधेरे कहां समझते हैं भला मशाल के जलने का दर्द
वजह कोई भी हो हर सूरत में दोनों की मात तो है
डूबने वाले के लिये फ़र्क नहीं मंझधार और किनारे में
बेबसी का सबब जिन्दगी के उलझे हुये हालात ही तो हैं
गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है

ख्व़ाहिशों की भीड़ में

ख्व़ाहिशों की भीड़ में

साँस जाने बोझ कैसे जीवन का ढोती रही
नयन बिन अश्रु रहे पर ज़िन्दगी रोती रही ।
एक नाज़ुक ख्वाब का अन्जाम कुछ ऐसा हुआ
मैं तड़पता रहा इधर वो उस तरफ रोती रही ।
भूख , आँसू और गम़ ने उम्र तक पीछा किया
मेहनत के रूख़ पर ज़र्दियाँ , तन पे फटी धोती रही।
उस महल के बिस्तरे पर सोते रहे कुत्ते बिल्लियाँ
धूप में पिछवाड़े एक बच्ची छोटी सोती रही ।
आज तो उस माँ ने जैसे तैसे बच्चे सुला दिये
कल की फ़िक्र पर रात भर दामन भिगोती रही ।
तंग आकर मुफ़लिसी से खुदखुशी कर ली मगर
दो गज़ कफ़न को लाश उसकी बाट जोहती रही।
`जितमोहन’ बशर की ख्वाहिशों का कद इतना बढ़ गया
ख्व़ाहिशों की भीड़ में कहीं ज़िन्दगी रोती रही ।

कोई आँसू बहाता है कोई आँसू बहाता है

कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है
ये सारा खेल उसका है, वही सब को नचाता है।
बहुत से ख़्वाब लेकर के, वो आया इस शहर में था
मगर दो जून की रोटी, बमुश्किल ही जुटाता है।
घड़ी संकट की हो या फिर कोई मुश्किल बला भी हो
ये मन भी खूब है, रह रह के, उम्मीदें बँधाता है।
मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी
घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है।
बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुज़ुर्गों से
उन्हीं रस्मों रिवाजों, को अभी तक वो निभाता है।
किसी को ताज मिलता है, किसी को मौत मिलती है
ये देखें, प्यार में, मेरा मुकद्दर क्या दिखाता है।

उसने जो चाहा था मुझे इस ख़ामुशी के बीच मुझको किनारा मिल गया उस बेखुदी के बीच घर में लगी जो आग तो लपटों के दरमियां मुझको उजाला मिल गया उस तीरगी के बीच उसकी निगाहेनाज़ को समझा तो यों लगा कलियाँ हज़ार खिल गईं उस बेबसी के बीच मेरे हजा़र ग़म जो थे उसके भी इसलिए उसने हँसाकर हँस दिया उस नाखुशी के बीच मेरी वफ़ा की राह में उँगली जो उठ गई दूरी दीवार बन गई इस ज़िंदगी के बीच दुनिया खफ़ा है आज भी तो क्या हुआ उसका ही रंगो नूर है इस शायरी के बीच

उसने जो चाहा था मुझे इस ख़ामुशी के बीच
मुझको किनारा मिल गया उस बेखुदी के बीच
घर में लगी जो आग तो लपटों के दरमियां
मुझको उजाला मिल गया उस तीरगी के बीच
उसकी निगाहेनाज़ को समझा तो यों लगा
कलियाँ हज़ार खिल गईं उस बेबसी के बीच
मेरे हजा़र ग़म जो थे उसके भी इसलिए
उसने हँसाकर हँस दिया उस नाखुशी के बीच
मेरी वफ़ा की राह में उँगली जो उठ गई
दूरी दीवार बन गई इस ज़िंदगी के बीच
दुनिया खफ़ा है आज भी तो क्या हुआ
उसका ही रंगो नूर है इस शायरी के बीच

एक रात

अँधियारे जीवन-नभ में
बिजुरी-चमक गयी तुम!
सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम!
कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम!
महकी गंध त्रियामा जब
पायल-झमक गयीं तुम!
तुलसी-चौरे पर आकर
अलबेली छमक गयीं तुम!
सूने घर-आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम!

उजड़े हुए चमन

उजड़े हुए चमन का, मैं तो बाशिंदा हूँ
कोई साथ है तो लगता है, मैं भी अभी ज़िंदा हूँ
ज़िंदगी अब लगती है, बस इक सूनापन
जब से बिछडे हुए हैं, तुमसे हम
जान अब तो तेरे लिए ही, बस मैं ज़िंदा हूँ
ज़िंदगी के सफ़र में, तेरे साथ हैं हम
मैंने सोचा है बस, बस तेरे हैं हम
होके तुमसे जुदा, मैं कैसे कहूँ ज़िंदा हूँ
यार अब तो तेरे ही, सपने देखते हैं हम
ख़्वाब में कहते हो मुझसे, कि तेरे हैं हम
कुछ मजबूरी है सनम, जो मैं शर्मिंदा हूँ

आंशु भर आते है

आंशु भर आते है आँखों में हर एक हशी के बाद !
गम बन गया नशीब मेरा हर ख़ुशी के बाद !!
निकला था कारवा मोहब्बत की राह में !
हर मोर पे नफरत खरी थी हर गली के बाद !!
सोचा था प्यार का मैं संजोउगा गुलशन !
हर फूल जल गया मेरा बनकर कलि के बाद !!
चाहत की बेबसी का ये कैसा हैं इम्तिहान !
दिल ने ना सकू पाया कभी दिल लगाने के बाद !!
अब राख़ ही समेटता हूँ आशियाने की !
खुद ही जला दी थी जिसे आजादी के बाद !!
सुनते है बाद मरने के मिलता है सब सिला !
देखेगे क्या मिलेगा मुझे जिन्दगी के बाद !!

अपनेपन का मतवाला’

अपनेपन का मतवाला’


अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं खो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता मैं हो न सका
देखा जग ने टोपी बदली
तो मन बदला, महिमा बदली
पर ध्वजा बदलने से न यहाँ
मन-मंदिर की प्रतिमा बदली
मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता मैं हो न सका
हड़ताल, जुलूस, सभा, भाषण
चल दिए तमाशे बन-बनके
पलकों की शीतल छाया में
मैं पुनः चला मन का बन के
जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता में हो न सका
दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे
ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुख शय्या पर भी सो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता मैं हो न सका

‘हर ज़ुल्म

हर सितम हर ज़ुल्म जिसका आज तक सहते रहे
हम उसी के वास्ते हर दिन दुआ करते रहे
दिल के हाथों आज भी मजबूर हैं तो क्या हुआ
मुश्किलों के दौर में हम हौसला रखते रहे
बादलों की बेवफ़ाई से हमें अब क्या गिला
हम पसीने से ज़मीं आबाद जो करते रहे
हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम
चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे
चाँद सूरज को भी हमसे रश्क होता था कभी
इसलिए कि हम उजाला हर तरफ़ करते रहे
हमने दुनिया को बताया था वफ़ा क्या चीज़ है
आज जब पूछा गया तो आसमाँ तकते रहे
हम तो पत्थर हैं नहीं फिर पिघलते क्यों नहीं
भावनाओं की नदी में आज तक बहते रहे

Wednesday, November 24, 2010

"Agar Dola Khabhi..." bahut hi pyari kavita hai Dharamvir Bharati Ji ki. Main jab kabhi tanha hota hoon aur antarman rone lagta hai, to main yeh kavita padhta hoon. Maine baar baar yeh kavita padhi hai. Bharati Ji ko dhanyavad aesi kaaljayi rachna likhne ke liye.

"Agar Dola Khabhi..." bahut hi pyari kavita hai Dharamvir Bharati Ji ki. Main jab kabhi tanha hota hoon aur antarman rone lagta hai, to main yeh kavita padhta hoon. Maine baar baar yeh kavita padhi hai. Bharati Ji ko dhanyavad aesi kaaljayi rachna likhne ke liye.

अपाहिज व्यथा

अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ,
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ ।

ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है,
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ ।

अँधेरे में कुछ ज़िंदगी होम कर दी,
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ ।

वे संबंध अब तक बहस में टँगे हैं,
जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ ।

तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला,
तुम्हें क्या पता क्या सहन कर रहा हूँ ।

मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब,
तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ ।

समाआलोचको की दुआ है कि मैं फिर,
सही शाम से आचमन कर रहा हूँ ।

कहते हैं, तारे गाते हैं

कहते हैं, तारे गाते हैं ।

सन्नाटा वसुधा पर छाया,
नभ में हमने कान लगाया,
फिर भी अगणित कंठों का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं ।
कहते हैं, तारे गाते हैं ।

स्वर्ग सुना करता यह गाना,
पृथ्वी ने तो बस यह जाना,
अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आँसू आते हैँ ।
कहते हैं, तारे गाते हैं ।

ऊपर देव, तले मानवगण,
नभ में दोनों गायन-रोदन,
राग सदा ऊपर को उठता, आँसू नीचे झर जाते हैं ।
कहते हैं, तारे गाते हैं ।

पर्वत-सी पीर

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं

आज मानव का सुनहला प्रात है,
आज विस्मृत का मृदुल आघात है;
आज अलसित और मादकता-भरे,
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है;

मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो ।

आज सौरभ में भरा उच्छ्‌वास है,
आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है;
आज शतदल पर मुदित सा झूलता,
कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है;

लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो
आज मिल लो, मान करना छोड दो ।

आज मधुकर कर रहा मधुपान है,
आज कलिका दे रही रसदान है;
आज बौरों पर विकल बौरी हुई,
कोकिला करती प्रणय का गान है;

यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।

आज नयनों में भरा उत्साह है,
आज उर में एक पुलकित चाह है;
आज श्चासों में उमड़कर बह रहा,
प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;

डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो
आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।

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