Thursday, November 25, 2010

एक रात

अँधियारे जीवन-नभ में
बिजुरी-चमक गयी तुम!
सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम!
कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम!
महकी गंध त्रियामा जब
पायल-झमक गयीं तुम!
तुलसी-चौरे पर आकर
अलबेली छमक गयीं तुम!
सूने घर-आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम!

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