अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया
सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया
एक डोली और एक अर्थी आपस में टकरा गए इन्हें देख लोग घबरा गये ऊपर से आवाज़ आई ये कैसी बिदाई है लोगो ने कहा महबूब की डोली देखने यार की अर्थी आई है
Tuesday, April 3, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
kavitaye
-
►
2009
(1)
- ► 12/27 - 01/03 (1)
-
►
2010
(89)
- ► 09/12 - 09/19 (30)
- ► 11/21 - 11/28 (55)
- ► 11/28 - 12/05 (1)
- ► 12/12 - 12/19 (1)
- ► 12/26 - 01/02 (2)
-
►
2011
(14)
- ► 01/30 - 02/06 (1)
- ► 02/06 - 02/13 (1)
- ► 02/13 - 02/20 (2)
- ► 03/06 - 03/13 (1)
- ► 03/20 - 03/27 (4)
- ► 07/17 - 07/24 (1)
- ► 10/16 - 10/23 (1)
- ► 12/25 - 01/01 (3)
-
▼
2012
(7)
- ► 02/05 - 02/12 (1)
- ► 02/12 - 02/19 (1)
- ► 03/11 - 03/18 (1)
- ► 07/22 - 07/29 (1)
- ► 12/02 - 12/09 (2)
-
►
2013
(3)
- ► 02/10 - 02/17 (1)
- ► 12/29 - 01/05 (2)
Feedjit
Blog: |
मेरी कविताओं का संग्रह |
Topics: |
19 comments:
waah! lazwaab,bahut hi umda,,,
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया ..
गज़ब का शेर है इस लाजवाब गज़ल का ... बहुत पसंद आया ...
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया
...बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल ....
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया ।
क्या बात है महफूज जी । बेहद शुंदर ।
बहुत बहुत दिनों बाद आई यहां और खूबसूरत गज़ल से मुलाकात हो गई ।
ब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
bahut khoob badhi
rachana
वाह!!!
खूबसूरत गज़ल.......................
अनु
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
......बहुत ही उम्दा शेर पढ़े हैं दिनेशजी ......
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया
behatariin
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
अच्छी गजल !! आभार.
कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
Subhan Allah...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । धन्यवाद ।
वाह...मन प्रसन्न हो गया आपकी प्रस्तुति देखकर...उम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
आपके समक्ष एक गुजारिश ले कर आया हूँ,
डॉ अनवर जमाल अपने ब्लॉग पर महिला ब्लोग्गरों के चित्र लगा रखे कुछ ऐसे-वैसे शब्दों के साथ. LIKE कॉलम में. उससे कई बार रेकुएस्ट कर ली पर उसके कान में जूं नहीं रेंग रही. आप विद्वान ब्लोगर है, मैं आपसे ये प्राथना कर रहा हूँ
कि उसके यहाँ कमेंट्स न करें,
न अपने ब्लॉग पर उसे कमेंट्स करेने दें.
न ही उसके किसी ब्लॉग की चर्चा अपने मंच पर करें,
न ही उसको अनुमति दें कि वो आपकी पोस्ट का लिंक अपने ब्लॉग पर लगाये,
उनको समझा कर देख लिया. उसका ब्लॉग्गिंग से बायकाट होना चाहिए. मेरे ख्याल से हम लोगों के पास और कोई रास्ता नहीं है.
बहुत ही सुंदर
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपनी शुभकामनाएं प्रदान करें.
आज 23/07/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
वाह ... बहुत खूब।
बहुत सही बात लिखी है |
आशा
Post a Comment